लेखनी कहानी -14-Nov-2022# यादों के झरोखों से # मेरी यादों की सखी डायरी के साथ
प्रिय सखी।
कैसी हो। मैं अब अच्छी हूं ।दो दिन से बुखार चढ़ रहा था सुह सुबह ही चढ़ जाता था। कुछ लिखने का मन ही नही करता था।अब पतिदेव तो वैसे ही खिलाफ है हमारे लेखन के अब तो बहाना मिल गया।"तुम मोबाइल को हाथ मत लगाना । तुम्हारी तबियत ख़राब है।अरे महाशय जी बुखार मे सारे घर का काम करती हूं जब कुछ नही लेकिन मोबाइल पर लिखूं तो तबीयत खराब है।हे सखी क्या सभी मर्द ओरत को आगे बढ़ता नही देखना चाहते या हमारे पतिदेव ही ऐसे है । बड़ा कन्फ्यूजन है।
आज मेरे कमरे का पंखा जल गया ।अभी वारंटी मे है लेकिन जब सर्विस वाला आया कंपनी से तो वारंटी देने से मना कर रहा है कहता है इसकी बोडी टूटी है ।हमने क्या जानबूझ कर तोड़ दी ।भाई छत पर लटका हुआ था चलता चलता जाम हो गया।अब ये कम्पनी वालों को कौन समझाए।हर जगह लूट मची हुई है आन लाइन से आनलाइन ।और बाजार से बाजार मे।कल मैंने आनलाइन फ्रूट्स मंगवाए सारे गले सड़े निकले। दुकान दारों के भाव ही इतने है के पूछो मत ।अब पंखे की आनलाइन एक साल की वारंटी थी लेकिन अब देने मे आनाकानी कर रहा है।हर जगह लूट, हर जगह दमन,हर जगह दंगा। क्या इसी का नाम जीवन है।पता नही कहते तो है भगवान राम का राज्य न्याय प्रिय था लेकिन जब भी जायदती तो सीता जी के साथ भी हुई थी ।चौदह साल पति के साथ जंगलों मे फिरी और उसी पति ने एक धोबी के कहने से सीता जी का त्याग कर दिया और सारे राजसी सुखों से वंचित कर दिया।औरत कही भी सुखी नहीं है ये देखा है मैने।अब चलती हूं अलविदा।